🔸250 करोड़ रुपए या उससे कम के IPO में लिस्टिंग के नए नियम !

Delisting-डिलिस्टिंग

क्या होती है डिलिस्टिंग?
Delisting: डिलिस्टिंग (असूचीबद्ध होना) किसी स्टॉक एक्सचेंज से रियल ट्रेडिंग के लाइव उदाहरण किसी लिस्टेड (सूचीबद्ध) सिक्योरिटी को हटा लेना है। किसी सिक्योरिटी की डिलिस्टिंग स्वैच्छिक या अस्वैच्छिक हो सकती है और आम तौर पर तब होती है जब रियल ट्रेडिंग के लाइव उदाहरण कोई कंपनी अपना कारोबार बंद करती है, खुद को दिवालिया घोषित कर देती है, विलय करती है, लिस्टिंग आवश्यकताओं को पूरी नहीं करती या निजी हो जाने की इच्छा जताती है। डिलिस्टिंग का आम तौर पर अर्थ होता है कि लिस्टेड कंपनी, स्टॉक एक्सचेंज की आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रही है। बड़े इंडेक्सों के लिए लंबे समय तक 1 डॉलर प्रति शेयर से नीचे की कीमत पसंद नहीं की जाती और यह डिलिस्टिंग के लिए एक कारण हो सकता है। डिलिस्टिंग के दुष्परिणाम महत्वपूर्ण हो सकते हैं और कुछ कंपनियां डिलिस्टिंग से बचने के लिए काफी प्रयास करती हैं।

डिलिस्टिंग किस प्रकार काम करती है?
कंपनियों को किसी एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने से पूर्व अनिवार्य रूप से विशिष्ट दिशानिर्देशों, जिन्हें ‘लिस्टिंग स्टैंडर्ड्स' कहा जाता है, का पालन करना चाहिए। प्रत्येक एक्सचेंज जैसेकि न्यूयार्क स्टॉक एक्सचेंज (एनवाईएसई), लिस्टिंग के लिए अपने खुद के नियम और रेगुलेशन स्थापित करता है। जो कंपनियां किसी एक्सचेंज द्वारा निर्धारित न्यूनतम मानकों का पालन रियल ट्रेडिंग के लाइव उदाहरण करने में विफल रहती हैं, वे अनापेक्षित तरीके से डिलिस्ट हो जाएंगी। सबसे आम मानक कीमत है। उदाहरण के लिए, अगर कोई कंपनी कई महीनों तक की अवधि के लिए 1 डॉलर प्रति शेयर की कीमत से नीचे रही है, वह खुद को डिलिस्ट होने के खतरे में पाएगी।

वैकल्पिक रूप से, कोई कंपनी स्वेच्छा से डिलिस्ट होने के लिए आग्रह कर सकती हैं। कुछ कंपनियां जब कॉस्ट-बेनेफिट एनालिसिस के जरिये पाती हैं कि पब्लिकली लिस्टेड होने का खर्च लाभ से अधिक है तो वे प्राइवेटली ट्रेडेड होना पसंद करती हैं। डिलिस्ट होने का आग्रह उस वक्त अधिक आता है जब कंपनियों की खरीद प्राइवेट इक्विटी कंपनियों द्वारा होती है और वे नए शेयरधारकों द्वारा पुनर्गठित होंगी। ये कंपनियां प्राइवेटली ट्रेडेड बन जाने के लिए डिलिस्टिंग के लिए आवेदन कर सकती हैं। इसके अतिरिक्त, जब कंपनियां विलय करती हैं और एक नई इनटिटी की तरह ट्रेड करती हैं तो पहले से अलग हुई कंपनियां स्वेच्छा से डिलिस्टिंग के लिए आग्रह कर सकती हैं।

Exclusive: छोटे इश्यू के लिस्टिंग भाव में अंतर की दिक्कत दूर होगी, IPO की लिस्टिंग प्राइस में अंतर घटेगा

New Rules for IPO Listing: आमतौर पर एक्सचेंजेज पर शेयरों की कीमत में कुछ पैसों का ही अंतर रहता है. लेकिन इस इश्यू के प्राइस में भारी अंतर से सिस्टम में खामी का अंदाजा लगा. Sebi अब इस समस्या को दूर करने की कोशिश कर रही है.

दोनों एक्सचेंजों के भाव का औसत निकालकर लिस्टिंग होगी. (Reuters)

New Rules for IPO Listing: इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) के नियम में बड़ा बदलाव होने वाला है.250 करोड़ रुपये या उससे कम के आईपीओ (IPO) में लिस्टिंग के बाद एक्सचेंजेज पर कीमतों में रहने वाले भारी अंतर को दूर किया जाएगा. ज़ी मीडिया को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक सेबी (Sebi) इस समस्या का उपाय निकालने पर विचार कर रही है. इसके लिए दोनों एक्सचेंजों के प्री-ओपनिंग सेशन में आने वाले इक्विलिब्रियम प्राइस का औसत निकालकर भाव तय किया जा सकता है, ताकि दोनों एक्सचेंज में भाव में अंतर न रहे. अभी इक्विलिब्रियम प्राइस के 5 फीसदी का सर्किट फिल्टर लागू होता है. जबकि 10 दिन तक इंट्रा डे ट्रेडिंग की इजाजत भी नहीं होती. ऐसे में एक ही इश्यू के भाव में अलग अलग एक्सचेंज पर कीमतों में अंतर बना रहता है.

ऐसे इश्यूज की प्राइस डिस्कवरी में खामी का सबसे बड़ा उदाहरण इसी साल अप्रैल में लिस्ट हुए वेरांडा लर्निंग सोल्यूशंस के इश्यू में दिखा था. कंपनी का शेयर 137 रुपये के इश्यू प्राइस पर जारी हुआ था. लेकिन NSE में एक घंटे के प्री-ओपनिंग सेशन में इक्विलिब्रियम प्राइस 125 रुपये आया था. जबकि BSE में ये 157 रुपये था. यानि 137 रुपये के इश्यू प्राइस वाले IPO में इक्विलिब्रियम प्राइस में ही 32 रु का अंतर था. लिस्टिंग के दिन इश्यू के क्लोजिंग प्राइस में भी अच्छा खासा अंतर दिखा था. NSE पर इश्यू की क्लोजिंग 160 रु पर हुई थी. जबकि BSE पर लिस्टिंग के दिन इश्यू 131 रु पर बंद हुआ था.

दूर करने की कोशिश कर रही सेबी

आमतौर पर एक्सचेंजेज पर शेयरों की कीमत में कुछ पैसों का ही अंतर रहता है. लेकिन इस इश्यू के प्राइस में भारी अंतर से सिस्टम में खामी का अंदाजा लगा. Sebi अब इस समस्या को दूर करने की कोशिश कर रही है. इस मामले को लेकर सेबी की सेकेंडरी मार्केट एडवाइजरी कमेटी की बैठक में चर्चा हुई . जिसमें दोनों एक्सचेंजों के भाव का औसत निकालने पर फैसला हुआ.

250 करोड़ से अधिक के IPO में सर्किट फिल्टर 20 फीसदी का होता है. ऐसे में इश्यू में लिस्टिंग में अंतर होने पर भाव को आगे एडजस्ट होने का काफी मौका रहता है. लेकिन 5 फीसदी का सर्किट फिल्टर होने पर भाव में समानता आने में दिक्कत होती है.

🔸250 करोड़ रुपए या उससे कम के IPO में लिस्टिंग के नए नियम !

Delisting-डिलिस्टिंग

क्या होती है डिलिस्टिंग?
Delisting: डिलिस्टिंग (असूचीबद्ध होना) किसी स्टॉक एक्सचेंज से किसी लिस्टेड (सूचीबद्ध) सिक्योरिटी को हटा लेना है। किसी सिक्योरिटी की डिलिस्टिंग स्वैच्छिक या अस्वैच्छिक हो सकती है और आम तौर पर तब होती है जब कोई कंपनी अपना कारोबार बंद करती है, खुद को दिवालिया घोषित कर देती है, विलय करती है, लिस्टिंग आवश्यकताओं को पूरी नहीं करती या निजी हो जाने की इच्छा जताती है। डिलिस्टिंग का आम तौर पर अर्थ होता है कि लिस्टेड कंपनी, स्टॉक एक्सचेंज की आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रही है। बड़े इंडेक्सों के लिए रियल ट्रेडिंग के लाइव उदाहरण लंबे समय तक 1 डॉलर प्रति शेयर से नीचे की कीमत पसंद नहीं की जाती और यह डिलिस्टिंग के लिए एक कारण हो सकता है। डिलिस्टिंग के दुष्परिणाम महत्वपूर्ण हो सकते हैं और कुछ कंपनियां डिलिस्टिंग से बचने के लिए काफी प्रयास करती हैं।

डिलिस्टिंग किस प्रकार काम करती है?
कंपनियों को किसी एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने से पूर्व अनिवार्य रूप से विशिष्ट दिशानिर्देशों, जिन्हें ‘लिस्टिंग स्टैंडर्ड्स' कहा जाता है, का पालन करना चाहिए। प्रत्येक एक्सचेंज जैसेकि न्यूयार्क स्टॉक एक्सचेंज (एनवाईएसई), लिस्टिंग के लिए अपने खुद के नियम और रेगुलेशन स्थापित करता है। जो कंपनियां किसी एक्सचेंज द्वारा निर्धारित न्यूनतम मानकों का पालन करने में विफल रहती हैं, वे अनापेक्षित तरीके से डिलिस्ट हो जाएंगी। सबसे आम मानक कीमत है। उदाहरण के लिए, अगर कोई कंपनी कई महीनों तक की अवधि के लिए रियल ट्रेडिंग के लाइव उदाहरण 1 डॉलर प्रति शेयर की कीमत से नीचे रही है, वह खुद को डिलिस्ट होने के खतरे में पाएगी।

वैकल्पिक रूप से, कोई कंपनी स्वेच्छा से डिलिस्ट होने के लिए आग्रह कर सकती हैं। कुछ कंपनियां जब कॉस्ट-बेनेफिट एनालिसिस के जरिये पाती हैं कि पब्लिकली लिस्टेड होने का खर्च लाभ से अधिक है तो वे प्राइवेटली ट्रेडेड होना पसंद करती हैं। डिलिस्ट होने का आग्रह उस वक्त अधिक आता है जब कंपनियों की खरीद प्राइवेट इक्विटी कंपनियों द्वारा होती है और वे नए शेयरधारकों द्वारा पुनर्गठित होंगी। ये कंपनियां प्राइवेटली ट्रेडेड बन जाने के लिए डिलिस्टिंग के लिए आवेदन कर सकती हैं। इसके अतिरिक्त, जब कंपनियां विलय करती हैं और एक नई इनटिटी की तरह ट्रेड करती हैं तो पहले से अलग हुई कंपनियां स्वेच्छा से डिलिस्टिंग के लिए आग्रह कर सकती हैं।

Investment Tips : सोना है खरा निवेश, आपको भी करना है गोल्‍ड में इनवेस्‍टमेंट तो इन विकल्‍पों पर डालें नजर

बढ़ती महंगाई में सोना एक बढिया निवेश विकल्‍प है.

सोने में निवेश (Gold Investment) करने के बहुत से विकल्‍प हैं. सोने में निवेश के ये सभी साधन सोने की कीमत से ही जुड़े हुए . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : July 08, 2022, 12:38 IST

नई दिल्‍ली. बढ़ती महंगाई और शेयर बाजार (Stock Market) में आ रहे उतार-चढ़ाव से के कारण अब सोने में निवेश बढ़ रहा है. क्रिप्‍टोकरेंसी (Cryptocurrency) में आई भारी गिरावट से भी निवेशकों का रुख सोने (Gold) की ओर हुआ है. बढ़ती महंगाई में सोना एक बढि़या निवेश विकल्‍प है. भारत में सोने में निवेश (Gold Investment) के कई विकल्‍प उपलब्‍ध हैं. अगर आपका इरादा भी सोने में निवेश का है तो इस बात को जरूर ध्‍यान में रखें की रियल ट्रेडिंग के लाइव उदाहरण सोने से शॉर्ट टर्म में रिटर्न की उम्‍मीद नहीं है. यह लॉन्‍ग टर्म में अच्‍छा लाभ देने वाला विकल्‍प है.

लाइव मिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, मुख्‍यत: महंगाई ज्‍यादा करेंसी के बाजार में आने का परिणाम है. अमेरिका और भारत सहित बहुत से देशों के केंद्रीय बैंकों ने कोरोना महामारी के दौरान अपनी ब्‍याज दरों को काफी कम कर दिया था. अब केंद्रिय बैंकों को बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाने के लिए अपनी मौद्रिक नीति को फिर से कड़ा करना पड़ रहा है ताकि कैश फ्लो कम हो और इससे मांग में कमी आए तो महंगाई पर कुछ लगाम लगे. वहीं, दूसरी ओर सोने की आपूर्ति सीमित है. इसलिए जब लोग ज्‍यादा सोना खरीदते हैं तो इसके दाम चढ़ जाते हैं.

डेड एसेट है सोना
सोने को डेड एसेट कहा जाता है. इसमें किया गया निवेश बिजनेस से जुड़ा हुआ नहीं होता है. शेयरों में किया गया निवेश कंपनी के प्रॉफिट कमाने पर बढ़ता है. लेकिन सोने के साथ ऐसा नहीं है. सोने पर निवेशक को कोई डिविडेंड भी नहीं मिलता है. सोने पर कोई ब्‍याज भी नहीं मिलता है. कई बार ऐसा भी हुआ है कि सोने से लॉन्‍ग टर्म तक कोई रिटर्न हासिल नहीं हुआ है. वहीं इस दौरान स्‍टॉक मार्केट ने अच्‍छा रिटर्न दिया. उदाहरण के लिए वर्ष 2021 के बाद निफ्टी का 10.5 फीसदी सीएजीआर दिया है तो सोने का सीएजीआर 8.2 फीसदी रहा है.

सोने में निवेश के कई विकल्‍प
सोने में निवेश करने के बहुत से विकल्‍प हैं. आप सर्राफा बाजार से सोने के गहने, सोने के सिक्‍के या फिर बिस्किट खरीद सकते हैं. आप गोल्‍ड सेविंग फंड्स और गोल्‍ड एक्‍सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ETFs) से सोने की यूनिट खरीद सकते हैं. इसके अलावा आप सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले सॉवरेन गोल्‍ड बॉन्‍डस (SGBs) में भी निवेश कर सकते हैं. सोने में निवेश के ये सभी साधन सोने की कीमत से ही जुड़े हुए हैं. लेकिन, हर एक का उद्देश्‍य अलग है. अगर आप सर्राफा मार्केट से सोने लेते हैं तो इसके आप गहने बनाकर पहन सकते हैं. जो लोग सोने में ट्रेड करना चाहते हैं उनके लिए ईटीएफ सही है. जो लोग सोने में दीर्घकालीन निवेश करना चाहते हैं उनके लिए सॉवरेन गोल्‍ड बॉन्‍ड्स अच्‍छा विकल्‍प है, क्‍योंकि इसका लॉक इन रियल ट्रेडिंग के लाइव उदाहरण पीरियड 8 साल का होता है.

क्‍या डिजिटल गोल्‍ड लेना सही है
पिछले कुछ सालों से कुछ फिनटेक कंपनियां डिजिटल गोल्‍ड खरीदने का ऑफर भी निवेशकों को दे रही हैं. डिजिटल गोल्‍ड किसी ऐप से खरीदा जाता है और पार्टनर कंपनी की तिजोरी में रहता है. लेकिन, यह अनरेगुलेटिड है. पिछले साल ही सेबी ने डिजिटल गोल्‍ड को लेकर कंपनियों पर सख्‍ती की थी, जिसके बाद इसको काफी धक्‍का लगा है. किसी भी तरह का रेगुलेशन न होने के कारण डिजिटल गोल्‍ड में निवेश बहुत रिस्‍की है.

कितना लगता है टैक्‍स?
अगर आप सर्राफा बाजार से सोना लेते हैं तो आपको इस पर 3 फीसदी की दर से वस्‍तु एवं सेवा कर चुकाना होता है. जीएसटी सॉवरेन गोल्‍ड बॉन्‍ड्स और ईटीएफ पर लागू नहीं होता. अगर आप 3 साल बाद सोने को बेचते हैं और आपको लाभ होता है तो आपको उस पर कैपिटल गेन्‍स टैक्‍स चुकाना पड़ता है. आपकी आय जिस टैक्‍स स्‍लैब में आती है, उसी अनुसार यह टैक्‍स लगता है. अगर आप सोना खरीदने के तीन साल से ज्‍यादा समय के बाद उसे बेचकर मुनाफा कमाते हैं तो आपको उस पर 20 फीसदी की दर से लॉन्‍ग टर्म कैपिटल गेन्‍स टैक्‍स देना होता है. कैपिटल गेन्‍स टैक्‍स सर्राफा बाजार से खरीदे सोने और ईटीएफ पर चुकाना होता है. सॉवरेन गोल्‍ड बॉन्‍ड्स से हुए मुनाफे पर यह टैक्‍स नहीं लगता है.

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AscendEX Earn एक वन-स्टॉप सेवा केंद्र है, जहां उपयोगकर्ता AscendEX पर उपलब्ध निवेश के अवसरों की श्रेणी के बारे में जान सकते हैं। यह सेवा उपयोगकर्ताओं को डिजिटल संपत्तियों के संबंध में रणनीतिक निर्णय लेने और सूचित निर्णय लेने में मदद के लिए व्यापक संसाधन प्रदान करती है।

शब्द "स्टेकिंग" प्रूफ-ऑफ-स्टेक (“PoS”) ब्लॉकचेन नेटवर्क से आता है। PoS ब्लॉकचेन नेटवर्क्स विभिन्न आम सहमति की क्रियाविधियों में भाग लेने के लिए पूर्ण-नोड्स संचालित करने के लिए सत्यापनकर्ताओं पर भरोसा करते हैं, जिससे नेटवर्क सुरक्षा और लचीलापन को बढ़ावा मिलता है। उनके योगदान के बदले में, सत्यापनकर्ता ब्लॉक पुरस्कार अर्जित करते हैं। अर्जित किए गए ब्लॉक पुरस्कारों के अनुपातिक आवंटन के लिए व्यक्तिगत धारक सत्यापनकर्ताओं को संपत्तियां भी सौंप सकते हैं।

AscendEX का अभिनव स्टेकिंग उत्पाद उपयोगकर्ताओं को प्लेटफॉर्म पर सीधे हिस्सेदारी में भाग लेने और पुरस्कार अर्जित करने की अनुमति देता है। AscendEX उपयोगकर्ताओं के स्टेकिंग के ब्याज को एकत्रित करता है और उनकी ओर से विश्वसनीय सत्यापनकर्ताओं को संपत्ति सौंपता है। बस "प्रतिनिधि" बटन पर क्लिक करें, और उपयोगकर्ता स्टेकिंग के पुरस्कार अर्जित करना शुरू कर देंगे।

स्टेकिंग की ज्यादातर सेवाओं के विपरीत, AscendEX उपयोगकर्ताओं को किसी भी समय अपनी हिस्सेदारी वाली संपत्ति को पुनर्प्राप्त करने की अनुमति देता है। यह सुविधा स्टेकिंग की अवधियों को लंबे समय तक दरकिनार करती है।

"फार्मर" के लिए आमतौर पर यील्ड के दो स्रोत होते हैं: (1) पूल्स को पूंजी आवंटित करने के लिए "फार्मर्स" को वितरित शुल्क या ब्याज (यानी, "लिक्विडिटी में योगदान"), और (2) अतिरिक्त DeFi टोकन पुरस्कार जारी किए गए और फार्मर्स को वितरित किए गए। इसलिए एक फार्मर के लिए कुल यील्ड कई राजस्व धाराओं को देखते हुए ज्यादा आकर्षक है। इसके अतिरिक्त, यील्ड फार्मिंग में अक्सर लेवरेज्ड रणनीतियाँ शामिल होती हैं, उदाहरण के लिए, उधार ली गई धनराशि के साथ यील्ड फार्मिंग में भाग लेने से फार्मर एक रियल ट्रेडिंग के लाइव उदाहरण विशेष DeFi प्रोटोकॉल के लिए पूंजी आवंटन को और बढ़ा सकते हैं, इस प्रकार यील्ड को और ज्यादा बढ़ा सकते हैं। लेवरेज्ड यील्ड फार्मिंग रणनीतियाँ निश्चित रूप से उच्च जोखिम वहन करती हैं। उच्च यील्ड के हमेशा के लिए बने रहने की संभावना नहीं है, विशेष रूप से यह देखते हुए कि ज्यादातर लाभ जारी किए गए अतिरिक्त DeFi टोकन पुरस्कार के रूप में आते हैं, जिसमें टोकन का मूल्य अत्यधिक अस्थिर होता है। इसके अतिरिक्त, जैसे-जैसे यील्ड फार्मिंग को क्रिप्टोकरंसी पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर ज्यादा व्यापक रूप से अपनाया जाता है, यील्ड में गिरावट की संभावना होगी।

हाँ, AscendEX उपयोगकर्ता फार्मिंग छोड़ सकते हैं और कभी भी टोकन्स निकाल सकते हैं; हालाँकि, एक अनबॉन्डिंग अवधि होती है जो परियोजना-दर-परियोजना से भिन्न होती है।

ASD एक उपयोगिता टोकन है जो AscendEX के प्लेटफॉर्म के माध्यम से जारी किया जाता है। उपयोगकर्ताओं को कम शुल्क सुरक्षित करने के लिए सक्षम करते हुए USDT होल्ड करने से अकाउन्ट को VIP में अपग्रेड किया जा सकता है। होल्डर्स ASD वित्तीय उत्पादों में निवेश करके दैनिक आधार पर USDT के लाभ प्राप्त कर सकते हैं, प्वाइंट कार्ड का इस्तेमाल करके मार्जिन ब्याज पर 50% छूट का आनंद ले सकते हैं, ASD का इस्तेमाल करके नीलामी की घटनाओं में भाग ले सकते हैं, और बहुत कुछ।

लिक्विडिटी माइनिंग AMM (ऑटोमैटिक मार्केट मेकर) सिद्धांत के आधार पर विकसित एक लिक्विडिटी पूल है। इसमें विभिन्न लिक्विडिटी पूल्स होते हैं, और हर एक लिक्विडिटी पूल में दो डिजिटल टोकन्स होते हैं। आप लिक्विडिटी प्रोवाइडर बनने के लिए पूल्स में लिक्विडिटी प्रदान कर सकते हैं और लेनदेन फीस और लचीला ब्याज कमा कर सकते हैं। लिक्विडिटी जोड़ते समय, एक निश्चित अनुपात के अनुसार एक ही समय में दो करंसियों को जोड़ना जरूरी है। विथड्रॉ करते समय, लिक्विड एसेट्स दो करंसियों में कंवर्ट हो जाएगी और एक ही समय में वापस ले ली जाएगी। लिक्विड एसेट्स को बिना किसी हैंडलिंग फीस के रियल टाइम में जोड़ा और रिडीम किया जा सकता है।

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