जब पांडवों से नाराज होकर काशी से केदारनाथ आए थे भोलेनाथ, भीम ने पकड़ ली शेयर मार्केट के 12 रोचक फैक्ट्स कहानी थी 'बाबा' की पीठ- पढ़ें 10 रोचक कहानियां
केदारनाथ मंदिर शिव को समर्पित एक हिंदू मंदिर है. यह मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य में मंदाकिनी नदी के पास गढ़वाल हिमालय पर्वतमाला पर स्थित है. इस आर्टिकल में जानिए केदारनाथ से जुड़ी 10 रोचक कहानियां.
By: ABP Live | Updated at : 21 Oct 2022 08:08 AM (IST)
केदारनाथ मंदिर (फाइल फोटो)
Kedarnath Dham Stories: देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ धाम सबसे ज्यादा ऊंचाई पर बसा है. ये धाम मंदाकिनी नदी के किनारे 3581 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. ये उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है. जो पत्थरों के शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है. ये ज्योतिर्लिंग त्रिकोण आकार का है और इसकी स्थापना के बारे में कहा जाता है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ प्रकट हुए और उन्हे ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वरदान दिया.
12 ज्योतिर्लिगों में सर्वोच्च है केदारनाथ धाम
केदारनाथ में शिव का रुद्ररूप निवास करता है, इसलिए इस संपूर्ण क्षेत्र को रुद्रप्रयाग कहते हैं. केदारनाथ का मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के रुद्रप्रयाग नगर में है. यहां भगवान शिव ने रौद्र रूप में अवतार लिया था. केदारनाथ धान को देश के बारह ज्योतिर्लिगों में सर्वोच्च माना जाता है. मानो स्वर्ग में रहने वाले देवताओं का मृत्युलोक को झांकने का यह शेयर मार्केट के 12 रोचक फैक्ट्स कहानी झरोखा हो. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार बारह ज्योतिर्लिंगों में केदार का ज्योतिर्लिंग सबसे ऊंचे स्थान पर है.
किसने की मंदिर की स्थापना?
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केदारनाथ मंदिर एक छह फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है. मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर घूमने के लिए रास्ता है. बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं. मंदिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि इसकी स्थापना शेयर मार्केट के 12 रोचक फैक्ट्स कहानी आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी. केदारनाथ पहुंचने के लिए गौरीकुण्ड से 15 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है.
तीन भागों में बंटा है मंदिर
बाबा केदार का ये धाम कात्युहरी शैली में बना हुआ है. इसके निर्माण में भूरे रंग के बड़े पत्थरों का प्रयोग में किया गया है. मंदिर की छत लकड़ी की बनी हुई है, जिसके शिखर पर सोने का कलश है. मंदिर को तीन भागों में बांटा गया है पहला - गर्भगृह, दूसरा - दर्शन मंडप, जहां शेयर मार्केट के 12 रोचक फैक्ट्स कहानी पर दर्शनार्थी एक बड़े प्रांगण में खड़े होकर पूजा करते हैं और तीसरा - सभा मंडप, इस जगह पर सभी तीर्थ यात्री जमा होते हैं.
6 महीने खुलता है, 6 महीने बंद रहता है
भगवान केदारनाथ के दर्शन के लिए ये मंदिर केवल 6 महीने ही खुलता है और 6 महीने बंद रहता है. ये मंदिर वैशाखी के बाद खोला जाता है और दीपावली के बाद पड़वा बंद किया जाता है. मंदिर का कई बार जीर्णोद्धार किया गया है. भगवान शिव को समर्पित केदारनाथ मंदिर, चार धाम तीर्थ यात्रा सर्किट का एक हिस्सा है. मंदिर के पीछे, केदारनाथ शेयर मार्केट के 12 रोचक फैक्ट्स कहानी शिखर, केदार गुंबद और अन्य हिमालय की चोटियां हैं. इस क्षेत्र का ऐतिहासिक नाम केदार खंड हैं.
दर्शन से मोक्ष प्राप्ति की मान्यता
मान्यता है समूचा काशी, गुप्तकाशी और उत्तरकाशी क्षेत्र शिव के त्रिशूल पर बसा है. यहीं से पाताल और यहीं से स्वर्ग जाने का मार्ग है. शिव शेयर मार्केट के 12 रोचक फैक्ट्स कहानी पुराण के अनुसार मनुष्य यदी बदरीवन की यात्रा करके नर तथा नारायण और केदारेश्वर शिव के स्वरूप का दर्शन करता है, तो उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है.
यात्रा में मृत्यु होने पर मुक्ति की मान्यता
ऐसा मनुष्य जो केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में भक्ति-भावना रखता है और उनके दर्शन के लिए अपने स्थान से प्रस्थान करता है. लेकिन रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो जाती है, जिससे वह केदारेश्वर का दर्शन नहीं कर पाता है तो समझना चाहिए कि निश्चित ही उस मनुष्य की मुक्ति हो गई.
सबसे पहले पांडवों ने बनवाया था केदारनाथ मंदिर
ऐसा कहा जाता है कि केदारनाथ में मौजूद ज्योतिर्लिंग आधा है और इसे पूर्ण बनाता है नेपाल में मौजूद पशुपतिनाथ मंदिर का शिविलिंग. ऐसा भी कहा जाता है कि केदारनाथ का मंदिर सबसे पहले पांडवों ने बनवाया था, मगर ठंडा स्थान होने की वजह से यहां बना मंदिर और शिवलिंग दोनों ही बर्फ के नीचे दब गए थे. इसके बाद इस मंदिर का निर्माण आदिशंकराचार्य ने भी करवाया था. मंदिर के पीछे ही आदिशंकराचार्य ने समाधि भी ली थी. इसके बाद 10वीं शताब्दी में मालवा के राजा भोज ने इस मंदिर को दोबारा बनवाया.
पांडवों से छिप रहे थे भगवान शिव
ऐसी मान्यता है कि द्वापर काल में जब पांडवों ने महाभारत का युद्ध जीत लिया था. तब उन्हें इस बात की ग्लानि हो रही थी कि उन्होंने अपने भाइयों, सगे-संबंधियों का वध किया है. उन्होंने बहुत पाप किया है इसे लेकर वो बहुत दुखी रहा करते थे. इन पापों से मुक्ति के लिए पांडवों ने भगवान शिव के दर्शन के लिए काशी पहुंचे, लेकिन इस बात का पता जब भोलेनाथ को चला तो वो नाराज होकर केदारनाथ चले गए और फिर पांडव भी भोलेनाथ के पीछे-पीछे केदारनाथ पहुंच गए. भगवान शिव पांडवों से बचने के लिए बैल का रूप धारण कर बैल की झुंड में शामिल हो गए और तब भीम ने अपना विराट रूप धारण कर दो पहाड़ों पर अपना पैर रखकर खड़े हो गए. सभी पशु भीम के पैरों के नीचे से चले गए, परंतु भगवान शिव अंतर्ध्यान होने ही वाले थे कि भीम ने भोलेनाथ की पीठ पकड़ ली.
केदारनाथ को पंचकेदार भी कहा जाता है
ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शंकर नंदी बैल के रूप में प्रकट हुए थे तो उनका धड़ से ऊपरी भाग काठमांडू में प्रदर्शित हुआ था और वहां अब पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है. भगवान शिव की भुजाएं तुंगनाथ शेयर मार्केट के 12 रोचक फैक्ट्स कहानी में, भगवान शिव का चेहरा रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और भगवान शंकर की जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट हुई थी. इन्हीं खास वजहों से श्री केदारनाथ को पंचकेदार भी कहा जाता है.
Published at : 21 Oct 2022 08:08 AM (IST) Tags: Uttarakhand Kedarnath हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: News in Hindi
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Isaac Newton(आइज़क न्यूटन) को stock market ने कैसे हराया
आप सभी ने महान वैज्ञानिक आइज़क न्यूटन(शेयर मार्केट के 12 रोचक फैक्ट्स कहानी Isaac Newton) का नाम तो सुना ही होगा उनकी गुरुत्वाकर्षण की खोज किसी से छुपी नहीं है। लेकिन क्या आपको पता है की sir Isaac Newton ने एक बार stock market में भी अपना हाथ आजमाया था लेकिन उनको सफलता मिली या नही ये आप आगे की कहानी (story) में पढ़ेंगे।
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कौनसी कंपनी में किया न्यूटन ने investment
साल 1711 में एक South sea नाम की एक company शुरू हुई। और इंग्लैंड में उसने अपने आपको share market में लिस्ट किया। लोगो को उसका बिजनेस आइडिया बहुत पसंद आया और उसमे इन्वेस्ट करने लगे। उनमें से एक investor थे आइज़क न्यूटन (Isaac Newton)।
कुछ ही समय बाद Isaac Newton ने 100% तक profit कमाकर 7000 pounds की कमाई की।
लेकिन कुछ समय बाद ही south sea company के stock की मांग इतनी बढ़ गई की उसके शेयर की कीमत 300% तक बढ़ गई और ये देखकर उनको लगा की वो अपना profit गंवा रहे है।
न्यूटन एक बार फिर स्टॉक एक्सचेंज में गए शेयर मार्केट के 12 रोचक फैक्ट्स कहानी और उन्होंने फिर से 10 आउट सी कंपनी में और भी ज्यादा पैसे इन्वेस्ट कर दिए।
लेकिन कुछ समय बाद ही यह न्यूज़ आई कि द साउथ सी कंपनी कोई काम नहीं करती है और उसके बाद उसका शेयर प्राइस ₹0 हो गया और उसके बाद sir Isaac Newton को 20000 पाउंड का नुकसान हुआ।
"किल्ली तो ढिल्ली भई", क्या इस कहावत से पड़ा दिल्ली का नाम? दिलचस्प है इससे जुड़ी कहानी
History of Delhi यह सहस्त्राब्दियों पुराना शहर है। पौराणिक गाथाओं में इसका उल्लेख इंद्रप्रस्थ के रूप में मिलता है। दिल्ली का नाम दिल्ली कैसे पड़ा इसे जानने के लिए इतिहास के पन्नों को पलटना पड़ेगा। इसके पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं।
नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। दिल्ली आज जिस स्वरूप में है, इसे ऐसा बनने में कई शताब्दियां लगी। कभी इसे तोड़ा गया तो कभी फिर से संवारा गया। इतिहास में इसके बनने की कई कहानियां हैं। जो रोमांच से भरी हैं। यह सहस्त्राब्दियों पुराना शहर है।
पौराणिक गाथाओं में इसका उल्लेख इंद्रप्रस्थ के रूप में मिलता है। दिल्ली का नाम दिल्ली कैसे पड़ा, इसे जानने के लिए इतिहास के पन्नों को पलटना पड़ेगा। तो चलिए जानते हैं वो कहानियां जो दिल्ली को दिल्ली बनाती हैं।
पहली कहानी
इतिहासकार मानते हैं कि तोमर राजवंश में जो सिक्के बनाए जाते थे, उन्हें देहलीवाल कहा जाता था। ऐसे मान्यता है कि इसी से दिल्ली नाम पड़ा। कुछ लोगों इसे एक कहावत से जोड़ते हैं। लोगों का मानना है कि मौर्य राजा दिलु के सिंहासन के आगे एक कील ठोकी गई। कहा गया कि जब तक यह कील धंसी रहेगी। तब तक साम्राज्य कायम रहेगा।
कहानी के अनुसार राजा को शक हुआ। उन्होंने कील उखड़वा ली। तब से कहावत बहुत मशहूर हुई। किल्ली तो ढिल्ली भई। कहावत मशहूर हो रही और किल्ली, ढिल्ली और दिलु मिलाकर दिल्ली बन गया।
दूसरी कहानी
उदयपुर में प्राप्त शिलालेखों में दिल्लिका शब्द का प्रयोग किया हुआ पाया गया। कहा जाता है कि यह शिलालेख 1170 ईसवी का था। कहानी आगे बढ़ी तो 1206 ईसवी में दिल्ली, दिल्ली सल्तनत की राजधानी बनी। ऐसा माना जाता है कि आज की आधुनिक दिल्ली बनने से पहले दिल्ली सात बार उजड़ी, जिनके कुछ अवशेष आधुनिक दिल्ली में अब भी देखे जा सकते हैं।
आज की दिल्ली
इसके बाद दिल्ली ने मुगलों का शासन काल, ब्रिटिश शासन काल देखा। सन् 1947 में भारत अंग्रेजों से आजाद हुआ। आजादी के बाद इसे अधिकारिक रूप से भारत की राजधानी घोषित कर दिया गया। दिल्ली में कई राजाओं के साम्राज्य के उदय तथा पतन के साक्ष्य आज भी देखने को मिल जाते हैं। दिल्ली हमारे देश के भविष्य, भूतकाल एवं वर्तमान परिस्थितियों के मेल से बनी है।
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